Wednesday, January 27, 2010

ट्रैफिक जाम


ट्रैफिक जाम

महानगर में

बाल बच्चों को भी नहीं दे पाते

उतना समय

जितना बचाकर रखना पड़ता है ट्रैफिक जाम के लिए !


चाहे कटौती करनी पड़े

कसरत वर्जिश- योगा और पूजा में

छोड़नी पड़ें

रिश्ते नातेदारी की बेहद जरूरी औपचारिकताएं

किसी पर कोई रियायत नहीं करता ट्रैफिक

आप चाहे उच्च न्यायलय के न्यायाधीश हों,

मिलनातुर युवाप्रेमी हों या दम तोड़ते मरीज़ !

महानगर में बरसो रहते रहते

समझदार हो जाते हैं बहुत से लोग

वे घबराते नहीं ट्रैफिक जामों से

न गाली गलौच करते उस पर

सहजता से चुन लेते हैं कई जरूरी काम उसी समय के लिए

या तो हाथों में रखते है कोई प्रिय पुस्तक पढ़ने के लिए

या साज-श्रृंगार कर लेते हैं जाम हुए ट्रैफिक के व्यस्त चौराहों पर !


मुंबई दिल्ली के लम्बे प्रवास में

जाम हुए ट्रैफिक के प्रशांत महासागर में तैरते हुए

मैंने भी खोजी हैं चंद कविताए और कहानियाँ !









4 comments:

  1. एक अच्छी कविता के लिए बधाई । ख़ास बात यह कि आपने ट्रैफिक जाम जैसे त्रासद अनुभव को एक नए नज़रिए से देखा है । ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है । नाचीज़ का एक शेर है-

    इस शहर में तफ़रीह के सामान बहुत हैं
    हैरत है यहीं लोग परेशान बहुत हैं

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  2. इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए और एक अच्छा शेर उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद।

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  3. बहुत बहुत शुक्रिया ,
    आपके ब्लॉग में संवाद के अलावा traffic की रचना हर मुम्बईकर की आपबीती है ,मैं कार्यक्रम में जाते वक़्त रस्ते में ;गाड़ी में बैठे -बैठे ही हर नई ग़ज़ल -गीत याद करती हूँ क्योंकि उतना वक़्त घर नहीं मिलता जितना मुंबई traffic में फँस कर मिल जाता है .
    धन्यवाद

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  4. धन्यवाद लता जी ।
    मैं भी आपकी शायरी का प्रशंसक हूं । इधर मित्र देव मणि के माध्यम से आपके ब्लाग की कई बेहतरीन गजलें पढने का मौका मिला।आपके शब्दों का चयन लाजवाब है और शायरी के विषय मौजू हैं।

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