Thursday, June 24, 2010

गजल -   ४          जुगनू






जुगनू जुटे हैं उजालों के हक मे


अंधेरा मगर भागता ही नही है






कहां छिप गये हैं चांद और सूरज


कोई वो जगह जानता ही नही है






उठो नौजवानों तुम्ही उठ के बैठो


तुम कौन चांद ओ तारों से कम हो






अंधेरे से लड्ते हुए जुगनुओं को


कंधे से कंधा कदम से कदम दो

5 comments:

  1. उठो नौजवानों तुम्ही उठ के बैठो
    तुम कौन चांद ओ तारों से कम हो

    YAH SHER BAHUT ACHCHHA LAGA.

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  2. शुक्रिया प्रेम जी।

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  3. juganu jute hain ujaale ke haq men,
    jute the, jute hain, jute hi rahenge..

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  4. वाह क्या बात कही है ।

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  5. वाह शानदार गजल। बधाई स्वीकार करें।वाह शानदार गजल। बधाई स्वीकार करें।

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