गोवंडी झुग्गी बस्ती – एक रिपोर्ट और डोक्युमेंटरी फ़िल्म
चेंबूर के पास स्थित गोवंडी झुग्गी बस्ती मुम्बई महानगरीय इलाकों में संभवत: सबसे अधिक त्रासद स्तिथी मे है।महानगर के एक दूर दराज किनारे पर स्थित होने के कारण इस बस्ती की तरफ बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है।इस बस्ती मे लगभग बीस पच्चीस हजार निवासी भयंकर गरीबी के साथ साथ अकल्पनीय नारकीय जीवन जीने के लिये अभिशप्त हैं।
महानगर पालिका ने आसपास की संभ्रांत बस्तियों का कूडा कचरा इसी बस्ती मे जमा कर रखा है।यहां मुम्बई के जहरीले कचरे के कई पहाड से बन गये हैं जो दूर से ही आगन्तुकों का ध्यान खींचते हैं।बरसात के दिनों मे इन कचरे के पहाडों का कचरा बारिश के साथ बहकर बस्ती की गलियों मे दमघोंटू दुर्गंध पैदा करता है।बस्ती से होकर बहने वाला गन्दा नाला यहां के निवासियों की मुसीबत और अधिक बढा देता है।एक तरफ गंदा नाला और दूसरी तरफ कचरे के पहाड मिलकर ऐसी सामूहिक दुर्गंध पैदा करते हैं कि नाक पर कपडा रखने के बाद भी तीखी बदबू से निजात नही मिलती।यहां चारों तरफ मक्खी और मच्छरों का साम्राज्य है।साफ हवा,साफ पानी और पौष्टिक भोजन के अभाव मे बस्ती के लोगों मे कई बीमारियां चिंताजनक स्तिथि मे पहुंच गई हैं।
बस्ती के अधिकांश घरों मे टी.वी.और फेफडों से सम्बन्धित कई बीमारियां फैल चुकी हैं। स्कूली बच्चे भी इन गंभीर बीमारियों की चपेट मे हैं।बच्चों मे इन घातक बीमारियों का संक्रमण एक खतरनाक संकेत है। समय रहते हुए मुख्यत: गंदगी के कारण फैलने वाली इन बीमारियों की रोकथाम बहुत जरूरी है।
इस बस्ती के गरीब मेहनत कश मजदूर परिवारों के पास न अपने संसाधन हैं और न इनके पास संबन्धित सरकारी विभागों को अपनी स्थिति से अवगत कराने का समय एवम उचित जानकारी है।ज्यादातर लोग अनपढ हैं।बहुत से बच्चे भी १४ वर्ष तक के बच्चों की अनिवार्य शिक्षा कानून के बावजूद स्कूल नही जा पाते।एक तरह से गोवंडी बस्ती मुम्बई महानगर के माथे पर एक ऐसा कलंक है जिसके लिये हम सब जिम्मेदार हैं।यहां के गरीब लोग साक्षात नरक/ दोजख मे रह रहे हैं।यह नरक भी महानगर के संभ्रांत लोगो की जीवन शैली से ही उपजा नरक है।लेकिन इस नरक की सजा गोवंडी के निवासी भुगत रहे हैं।
कुछ समय पहले धर्म भारती मिशन नामक सामाजिक उत्थान के कार्यों मे जुटी संस्था ने इस बस्ती के तीन स्कूलों के बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने एवम शिक्षा का स्तर सुधारने तथा कम्पयूटर की शिक्षा देने की एक योजना शुरू की थी।धीरे धीरे कई सहृदय लोगों के सहयोग से इस संस्था ने यहां शौचालय आदि बनवाकर इलाके की सफाई आदि पर भी काफी काम किया है ।यह संस्था अपने सीमित साधनो के साथ आर.टी आई के माध्यम से भी यहां के निवासियों मे जागरूकता लाने के लिये प्रयास रत है।
धर्म भारती मिशन हालाकि पूरे प्रयत्न से अपने काम मे जुटा है लेकिन यहां की समस्याओं को देखते हुए इसे भी आटे मे नमक ही कहा जायेगा।इस काम को काफी बडे स्तर पर सरकारी एवम गैर सरकारी संस्थाओं की मदद से तेजी से आगे बढाने की आवश्यकता है।कई संस्थाओं एवम प्रबुद्ध बुद्धिजीवियों ने धर्म भारती मिशन के साथ जुडकर गोवंडी के समग्र विकास की एक महत्वाकांक्षी योजना ‘गोवंडी कायाकल्प परियोजना’ शुरु की है ।इस परियोजना मे जनता के सहयोग से गोवंडी को प्रदूषण एवम बीमारी से मुक्त कर बस्ती के बच्चों को स्तरीय शिक्षा उपलब्ध कराकर यहां का समग्र विकास सुनिश्चित किया जाएगा।गोवंडी का कायाकल्प कर इसे एक आदर्श बस्ती बनाकर देश और दुनिया के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करना है।इस योजना को सफलता पूर्वक शीघ्रातिशीघ्र पूरा करने के लिये सभी मुम्बई वासियों के सक्रिय सहयोग की आवश्यकता है।
सभी मुम्बई वासियों से अनुरोध है कि इस पवित्र काम मे ष्रमदान एवम आर्थिक सहभागिता कर ‘गोवंडी कायाकल्प परियोजना’ को सफल बनाने मे समुचित सहयोग करें।धर्म भारती मिशन के इस काम मे सहयोग के लिये 'नवसृष्टि इंटरनेशनल ट्रस्ट' को देय चेक या ड्राफ्ट निम्न पते पर भेज सकते हैं।
संयोजक
धर्म भारती मिशन
56-बी मित्तल टावर्श, नरीमन प्वाइंट
मुम्बई-400021
फोन-91-22-22043208
ई-मेल- sing_param@rediffmail.com
वेबसाईट www.dbmindia.org
अधिक जानकारी के लिये उपरोक्त पते पर पत्र व्यवहार अथवा निम्न नंबर पर संपर्क हो सकता है-
परमजीत सिंह 9892059168
नोट: हाल ही मे लेखक आर.के.पलीवाल और आबिद सुरती ने धर्म भारती मिशन के लिये गोवंडी झुग्गी बस्ती पर एक डोक्यूमेंटरी फिल्म बनाई है।इसे सभी मुम्बई और देश वासियों को देखना चाहिये।संपर्क –
आर.के.पालीवाल 9930989569
Sunday, September 12, 2010
Friday, July 2, 2010
गजल -५
गजल - ५
वो रोजे तक कजा नही करते
हम नमाज भी अदा नही करते
सदियों की दूरियां हैं हमारे दरमियां
फासले इतनी जल्दी मिटा नही करते
क्यूं सजदा सा करते हो आतताई का
फरिस्ते इस तरह झुका नही करते
ठिठक कर दायें बायें मत देखो
राह मे यूं रुका नही करते
हम तो लंबी डगर के घोडे हैं राकेश
दिनों महीनों का मुताअ नहीं करते
वो रोजे तक कजा नही करते
हम नमाज भी अदा नही करते
सदियों की दूरियां हैं हमारे दरमियां
फासले इतनी जल्दी मिटा नही करते
क्यूं सजदा सा करते हो आतताई का
फरिस्ते इस तरह झुका नही करते
ठिठक कर दायें बायें मत देखो
राह मे यूं रुका नही करते
हम तो लंबी डगर के घोडे हैं राकेश
दिनों महीनों का मुताअ नहीं करते
Thursday, June 24, 2010
Friday, June 18, 2010
गजल- 3
मीडिया
मीडिया पर माया का खौफ सा छाया हुआ
मीडिया अब आम लोगों के लिये माया हुआ
औरतों के जिस्म जो छपते थे पेज तीन पर
अब हर एक पेज पर मुद्द्दा यही छाया हुआ
सुर्ख खबरों का कोई आम से ताल्लुक नहीं
इन सभी खबरों का मौजू खास सरमाया हुआ
दंगा फसादी और फैशन दो बडे मसलए बने
इल्मो-अदब की पैरवी से भी कतराया हुआ
राकेश जब जम्हूरिअत लंगडी हुई है मुल्क की
मीडिया इस दौर मे रात का साया हुआ
मीडिया पर माया का खौफ सा छाया हुआ
मीडिया अब आम लोगों के लिये माया हुआ
औरतों के जिस्म जो छपते थे पेज तीन पर
अब हर एक पेज पर मुद्द्दा यही छाया हुआ
सुर्ख खबरों का कोई आम से ताल्लुक नहीं
इन सभी खबरों का मौजू खास सरमाया हुआ
दंगा फसादी और फैशन दो बडे मसलए बने
इल्मो-अदब की पैरवी से भी कतराया हुआ
राकेश जब जम्हूरिअत लंगडी हुई है मुल्क की
मीडिया इस दौर मे रात का साया हुआ
Friday, June 11, 2010
गजल 2
आगाज़
बंटे हुए हैं लोग बडी अनबन है
इन बन्द मकानो में बडी सीलन है
तपिस से झुलसे हैं इल्म के दरिया
नई किताबों मे सिर्फ छीलन है
उठो कुछ तो करो तुम भी राकेश
खतरे मे ताज ओर नरीमन है
बंटे हुए हैं लोग बडी अनबन है
इन बन्द मकानो में बडी सीलन है
तपिस से झुलसे हैं इल्म के दरिया
नई किताबों मे सिर्फ छीलन है
उठो कुछ तो करो तुम भी राकेश
खतरे मे ताज ओर नरीमन है
Monday, June 7, 2010
गजल - 1
गजल - 1
हम सफर तो नीम राह तक नही चले
कोई बताए दाल उनसे किस तरह गले
यादों की फेहरिस्त मे हैं हादसे कई
गनीमत है कि चलते रहे अपने काफिले
कुछ तो खुदा का कौल फेल कीजिए जरा
ये क्या कभी इधर कभी उधर जा मिले
तुमने अचानक आ के चोंका दिया मुझे
मैं सोचता था आओगे तुम देर दिन ढले
पैमाना दोस्ती का एक ये भी है राकेश
जो मंजिले मकसूद तक बेखतर चले
हम सफर तो नीम राह तक नही चले
कोई बताए दाल उनसे किस तरह गले
यादों की फेहरिस्त मे हैं हादसे कई
गनीमत है कि चलते रहे अपने काफिले
कुछ तो खुदा का कौल फेल कीजिए जरा
ये क्या कभी इधर कभी उधर जा मिले
तुमने अचानक आ के चोंका दिया मुझे
मैं सोचता था आओगे तुम देर दिन ढले
पैमाना दोस्ती का एक ये भी है राकेश
जो मंजिले मकसूद तक बेखतर चले
Wednesday, June 2, 2010
आबिद सुरती का सम्मान
ढब्बूजी पचहत्तर के हुए
देवमणि पाण्डेय, आर.के.पालीवाल, आबिद सुरती, दिनकर जोशी, साजिद रशीद, प्रतिमा जोशी, सुधा अरोड़ा
आबिद सुरती के 75 वें जन्म दिन के अवसर पर आबिद सुरती का सम्मान समारोह और उन्हीं पर केंद्रित शब्दयोग के विशेषांक का लोकार्पण हिन्दुस्तानी प्रचार सभा मुम्बई के सभागार में 28 मई 2010 को आयोजित हुआ। इस अवसर पर समाज सेवी संस्था ‘योगदान’ के सचिव आर.के.अग्रवाल ने आबिद सुरती की पानी बचाओ मुहिम के लिये दस हजार रुपये का चेक भेंट किया। सम्मान स्वरूप उन्हें शाल और श्रीफल के बजाय उनके व्यक्तित्व के अनुरूप कैपरीन (बरमूडा) और रंगीन टी शर्ट भेंट किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत में आर.के.पालीवाल की आबिद सुरती पर लिखी लम्बी कविता ‘आबिद और मैं’ का पाठ फिल्म अभिनेत्री एडीना वाडीवाला ने किया। सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी की एक चर्चित रचना ‘मैं, आबिद और ब्लैक आउट’ का पाठ उनकी सुपुत्री एवं सुपरिचित अभिनेत्री नेहा शरद ने स्वर्गीय शरद जोशी के अंदाज़ में प्रस्तुत किया।
आर.के.पालीवाल और आबिद सुरती
संचालक देवमणि पांडेय ने आबिद सुरती को घुमक्कड़, फक्कड़ और हरफ़नमौला रचनाकार बताते हुए निदा फ़ाज़ली के एक शेर के हवाले से उनकी शख़्सियत को रेखांकित किया-
हर आदमी मे होते हैं दस बीस आदमी
जिसको भी देखना हो कई बार देखना
समाज सेवी संस्था ‘योगदान’ की त्रैमासिक पत्रिका शब्दयोग के इस विषेशांक का परिचय कराते हुए इस अंक के संयोजक प्रतिष्ठित कथाकार आर. के. पालीवाल ने कहा कि आबिद सुरती बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। कथाकार और व्यंग्यकार होने के साथ ही उन्होंने कार्टून विधा में महारत हासिल की है, पेंटिंग मे नाम कमाया है, फिल्म लेखन किया है और ग़ज़ल विधा में भी हाथ आजमाये हैं। ‘धर्मयुग’ जैसी कालजयी पत्रिका में 30 साल तक लगातार ‘कार्टून कोना ढब्बूजी’ पेश करके रिकार्ड बनाया है। इसीलिये इस अंक का संयोजन करने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ी है क्योंकि आबिद सुरती को समग्रता मे प्रस्तुत करने के लिये उनके सभी पक्षों का समायोजन करना ज़रूरी था।
आबिद सुरती से सवाल पूछते हुए वरिष्ठ गुजराती साहित्यकार दिनकर जोशी
हिंदी साहित्यकार श्रीमती सुधा अरोड़ा ने आबिद सुरती से जुड़े कुछ रोचक संस्मरण सुनाये। उन्होंने ‘हंस’ में छपी आबिद जी की चर्चित एवम् विवादास्पद कहानी ‘कोरा कैनवास’ की आलोचना करते हुए कहा कि आबिद जैसी नेक शख़्सियत से ऐसी घटिया कहानी की उम्मीद नही थी। उर्दू साहित्यकार साजिद रशीद और मराठी साहित्यकार श्रीमती प्रतिमा जोशी ने भी आबिद जी की शख़्सियत पर प्रकाश डाला। वरिष्ठ गुजराती साहित्यकार दिनकर जोशी ने आबिद सुरती के साथ बिताये लम्बे साहित्य सहवास को याद करते हुए कहा कि आबिद पिछले कई सालों से अपने निराले अंदाज में लेखन मे सक्रिय हैं। यही उनके स्वास्थ्य एवम बच्चों जैसी चंचलता और सक्रियता का भी राज़ है।
श्रोताओं के प्रश्नों का उत्तर देते हुए आबिदसुरती
श्रोताओं के प्रश्नों का उत्तर देते हुए आबिद सुरती ने कहा कि मेरे सामने हमेशा एक सवाल रहता है कि मुझे पढ़ने के बाद पाठक क्या हासिल करेंगे। इसलिए मैं संदेश और उपदेश नहीं देता। आजकल मैं केवल प्रकाशक के लिए किताब नहीं लिखता और महज बेचने के लिए चित्र नहीं बनाता। मेरी पेंटिंग और मेरा लेखन मेरे आत्मसंतोष के लिए है। भविष्य में जो लिखूंगा अपनी प्रतिबद्धता (कमिटमेंट) के साथ लिखूंगा। श्रोताओं की फरमाइश पर आबिद जी ने अपनी एक ग़ज़ल का पाठ किया-
साथ तेरे है वक़्त भी तो ग़म नहीं
दिन कभी तो रात मेरी जेब में है
है न रोटी दो वक़्त की आबिद मगर
जहां सारा आज तेरी जेब में है
इस आयोजन में आबिद सुरती के बहुत से पाठकों एवम् प्रशंसकों के साथ मुंबई के साहित्य जगत से कथाकार ऊषा भटनागर, कथाकार कमलेश बख्शी, कथाकार सूरज प्रकाश , कवि ह्रदयेश मयंक, कवि रमेश यादव, कवि बसंत आर्य, हिंदी सेवी जितेंद्र जैन (जर्मनी), डॉ.रत्ना झा, ए.एम.अत्तार और चित्रकार जैन कमल मौजूद थे। प्रदीप पंडित (संपादक: शुक्रवार), डॉ. सुशील गुप्ता (संपादक: हिंदुस्तानी ज़बान), मनहर चौहान (संपादक: दमख़म), डॉ. राजम नटराजन पिल्लै (संपादक: क़ुतुबनुमा), दिव्या जैन (संपादक: अंतरंग संगिनी), मीनू जैन (सह संपादक: डिग्निटी डार्इजेस्ट) ने भी अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई ।
आबिद सुरती का संक्षिप्त परिचय
हिन्दी और गुजराती के प्रसिद्ध कथाकार,कार्टूनिस्ट और प्रख्यात चित्रकार आबिद सुरती का जन्म पांच मई उन्नीस सौ पैंतीस मे राजुला (गुजरात) के एक सफल व्यवसायिक परिवार मे हुआ। जन्म के कुछ समय बाद ही ऐसी परिस्थितियां बनी कि आबिद के परिवार का समुद्री जहाजों का कारोबार रेत के ढेर की तरह खत्म हो गया। पिता के ईलाज के लिये मां के साथ आबिद हमेशा के लिये मुम्बई आ गये। बचपन मे पिता की मृत्यू के बाद अमीरी के अर्श से गरीबी के फर्श पर आयी आबिद की अम्मी ने मेहनत मजूरी करके आबिद को पाला। गरीब बचपन के तमाम संघर्षों से दो चार होते हुए आबिद ने मुम्बई के जे. जे. कालेज आफ आर्टस की पढाई पूरी की। आजीविका के लिये मुम्बई की सडक पर चिक्की बेचने से लेकर किताबों की छोटी लाईब्रेरी चलाने आदि कामों मे हाथ आजमाने के बाद उन्होंने गुजराती और हिन्दी पत्रिकाओं के लिये हास्य व्यंग्य कार्टून बनाने और व्यवसायिक लेखन का काम किया।
जुलाई 1963 मे हिन्दी की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका धर्मयुग मे 25 वर्षों तक लगातार प्रकाशित होकर सिल्वर जुबली मनाने वाली ढब्बू जी कार्टून सीरीज ने आबिद सुरती को लोकप्रियता के ऐसे शिखर पर पहुंचाया जहां वे खुद ढब्बू जी बनकर हिन्दी पाठकों के मन मष्तिष्क मे आज तक आसन जमाकर बैंठे हैं।
चित्रकला को अपनी मनमाफिक विधा मानने वाले आबिद सुरती ने लेखन को मूलरुप से अपनी आजीविका के साधन के लिये अपनाया था। गुजराती मे हुआ उनका अधिकांश लेखन जिसका हिन्दी मे भी काफी अनुवाद हुआ है मुलत: व्यवसायिक लेखन ही है। आबिद जी खुद स्वीकारते हैं कि उस दौर का उनका लेखन फर्माईसी है जिसमे लेखक को पत्रिका और प्रकाशक की मांग के अनुरूप कफी समझोते करने पडते हैं और अपने प्रिय लेखक मित्रों की लानत मलामत भी सुननी पडती है।
आबिद सुरती का व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों बहु अयामी हैं।जैसे उनका रहन सहन,जीवन दर्शन,यहां तक कि पहनावा तक विशिष्ट है वैसे ही उनका कथा,कार्टून और चित्रकला संसार भी विशिष्ट है। जिन दिनों आबिद सुरती आजीविका के लिये लिख रहे थे उन दिनों भी उनकी कई कहानियों ने हिन्दी के पाठकों और आलोचकों का ध्यान आकर्षित किया था। बाद मे जब आबिद सुरती ने मूलत: हिन्दी मे लिखना शुरू किया तब से उनका लेखन विशुद्ध साहित्यिक श्रेणी का है।
कार्टून और चित्रकला के साथ साथ आबिद जी ने लेखन की लगभग सभी विधाओं मे हाथ आजमाए हैं।आबिद सुरती की अब तक 80 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इन्होंने कहानियों और उपन्यासों के अलावा कुछ गजलें, नाटक और फिल्म स्क्रिप्ट भी लिखी हैं।साहित्य और कला जगत की चकाचौंध से दूर रहते हुए आबिद सुरती पिछ्ले पचास पचपन वर्षों से इन दौनों क्षेत्रों की एकांत साधना करते रहे हैं। उनका अंदाजे बयां और अंदाजे चित्रण ही विशिष्ट नही बल्कि अंदाजे जीवन भी विशिष्ट है। आजकल वे साहित्य और कला के साथ साथ पानी बचाओ मुहिम के सामाजिक सरोकार से भी गहरे जुडे हैं। बहुत कम साहित्य संस्कृति कर्मी ऐसे हैं जो पानी जैसी बुनियादी चीजों के संरक्षण मे एक जमीनी सामाजिक कार्यकर्ता की तरह गहरे सरोकार रखते हैं।
कैनाल, कोरा कैनवास, बिज्जू, आतंकित और कोटा रेड जैसी चर्चित और प्रशंसित कहानियां एवम कथा वाचक, मुसलमान और अदमी और चूहे जैसे सशक्त उपन्यास लिख्नने वाले इस कथाकार को यूं तो साहित्य जगत के कुछ पुरस्कारों से नवाजा गया है लेकिन साहित्य के बडे पुरस्कार अभी उनकी पहुंच के बाहर रहे हैं। उनका लेखन अभी अनवरत जारी है। उम्मीद की जानी चाहिये कि उनकी कलम से अभी कई अच्छी रचनायें आना बाकी हैं। और निकट भविष्य मे उन्हें साहित्य जगत के शीर्ष पुरस्कारों से भी नवाजा जायेगा।
खुशी का अवसर यह भी है कि बहत्तर साल का बच्चा नाम का उपन्यास लिखने वाले आबिद सुरती आगामी 5 मई को पचहत्तर वर्ष के हो रहे हैं। आबिद जी की प्लेटिनम जयन्ती पर शब्दयोग पत्रिका ने उन पर हाल ही मे एक अंक (जून 2010) केंद्रित किया है।
देवमणि पाण्डेय, आर.के.पालीवाल, आबिद सुरती, दिनकर जोशी, साजिद रशीद, प्रतिमा जोशी, सुधा अरोड़ा
आबिद सुरती के 75 वें जन्म दिन के अवसर पर आबिद सुरती का सम्मान समारोह और उन्हीं पर केंद्रित शब्दयोग के विशेषांक का लोकार्पण हिन्दुस्तानी प्रचार सभा मुम्बई के सभागार में 28 मई 2010 को आयोजित हुआ। इस अवसर पर समाज सेवी संस्था ‘योगदान’ के सचिव आर.के.अग्रवाल ने आबिद सुरती की पानी बचाओ मुहिम के लिये दस हजार रुपये का चेक भेंट किया। सम्मान स्वरूप उन्हें शाल और श्रीफल के बजाय उनके व्यक्तित्व के अनुरूप कैपरीन (बरमूडा) और रंगीन टी शर्ट भेंट किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत में आर.के.पालीवाल की आबिद सुरती पर लिखी लम्बी कविता ‘आबिद और मैं’ का पाठ फिल्म अभिनेत्री एडीना वाडीवाला ने किया। सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी की एक चर्चित रचना ‘मैं, आबिद और ब्लैक आउट’ का पाठ उनकी सुपुत्री एवं सुपरिचित अभिनेत्री नेहा शरद ने स्वर्गीय शरद जोशी के अंदाज़ में प्रस्तुत किया।
आर.के.पालीवाल और आबिद सुरती
संचालक देवमणि पांडेय ने आबिद सुरती को घुमक्कड़, फक्कड़ और हरफ़नमौला रचनाकार बताते हुए निदा फ़ाज़ली के एक शेर के हवाले से उनकी शख़्सियत को रेखांकित किया-
हर आदमी मे होते हैं दस बीस आदमी
जिसको भी देखना हो कई बार देखना
समाज सेवी संस्था ‘योगदान’ की त्रैमासिक पत्रिका शब्दयोग के इस विषेशांक का परिचय कराते हुए इस अंक के संयोजक प्रतिष्ठित कथाकार आर. के. पालीवाल ने कहा कि आबिद सुरती बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। कथाकार और व्यंग्यकार होने के साथ ही उन्होंने कार्टून विधा में महारत हासिल की है, पेंटिंग मे नाम कमाया है, फिल्म लेखन किया है और ग़ज़ल विधा में भी हाथ आजमाये हैं। ‘धर्मयुग’ जैसी कालजयी पत्रिका में 30 साल तक लगातार ‘कार्टून कोना ढब्बूजी’ पेश करके रिकार्ड बनाया है। इसीलिये इस अंक का संयोजन करने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ी है क्योंकि आबिद सुरती को समग्रता मे प्रस्तुत करने के लिये उनके सभी पक्षों का समायोजन करना ज़रूरी था।
आबिद सुरती से सवाल पूछते हुए वरिष्ठ गुजराती साहित्यकार दिनकर जोशी
हिंदी साहित्यकार श्रीमती सुधा अरोड़ा ने आबिद सुरती से जुड़े कुछ रोचक संस्मरण सुनाये। उन्होंने ‘हंस’ में छपी आबिद जी की चर्चित एवम् विवादास्पद कहानी ‘कोरा कैनवास’ की आलोचना करते हुए कहा कि आबिद जैसी नेक शख़्सियत से ऐसी घटिया कहानी की उम्मीद नही थी। उर्दू साहित्यकार साजिद रशीद और मराठी साहित्यकार श्रीमती प्रतिमा जोशी ने भी आबिद जी की शख़्सियत पर प्रकाश डाला। वरिष्ठ गुजराती साहित्यकार दिनकर जोशी ने आबिद सुरती के साथ बिताये लम्बे साहित्य सहवास को याद करते हुए कहा कि आबिद पिछले कई सालों से अपने निराले अंदाज में लेखन मे सक्रिय हैं। यही उनके स्वास्थ्य एवम बच्चों जैसी चंचलता और सक्रियता का भी राज़ है।
श्रोताओं के प्रश्नों का उत्तर देते हुए आबिदसुरती
श्रोताओं के प्रश्नों का उत्तर देते हुए आबिद सुरती ने कहा कि मेरे सामने हमेशा एक सवाल रहता है कि मुझे पढ़ने के बाद पाठक क्या हासिल करेंगे। इसलिए मैं संदेश और उपदेश नहीं देता। आजकल मैं केवल प्रकाशक के लिए किताब नहीं लिखता और महज बेचने के लिए चित्र नहीं बनाता। मेरी पेंटिंग और मेरा लेखन मेरे आत्मसंतोष के लिए है। भविष्य में जो लिखूंगा अपनी प्रतिबद्धता (कमिटमेंट) के साथ लिखूंगा। श्रोताओं की फरमाइश पर आबिद जी ने अपनी एक ग़ज़ल का पाठ किया-
साथ तेरे है वक़्त भी तो ग़म नहीं
दिन कभी तो रात मेरी जेब में है
है न रोटी दो वक़्त की आबिद मगर
जहां सारा आज तेरी जेब में है
इस आयोजन में आबिद सुरती के बहुत से पाठकों एवम् प्रशंसकों के साथ मुंबई के साहित्य जगत से कथाकार ऊषा भटनागर, कथाकार कमलेश बख्शी, कथाकार सूरज प्रकाश , कवि ह्रदयेश मयंक, कवि रमेश यादव, कवि बसंत आर्य, हिंदी सेवी जितेंद्र जैन (जर्मनी), डॉ.रत्ना झा, ए.एम.अत्तार और चित्रकार जैन कमल मौजूद थे। प्रदीप पंडित (संपादक: शुक्रवार), डॉ. सुशील गुप्ता (संपादक: हिंदुस्तानी ज़बान), मनहर चौहान (संपादक: दमख़म), डॉ. राजम नटराजन पिल्लै (संपादक: क़ुतुबनुमा), दिव्या जैन (संपादक: अंतरंग संगिनी), मीनू जैन (सह संपादक: डिग्निटी डार्इजेस्ट) ने भी अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई ।
आबिद सुरती का संक्षिप्त परिचय
हिन्दी और गुजराती के प्रसिद्ध कथाकार,कार्टूनिस्ट और प्रख्यात चित्रकार आबिद सुरती का जन्म पांच मई उन्नीस सौ पैंतीस मे राजुला (गुजरात) के एक सफल व्यवसायिक परिवार मे हुआ। जन्म के कुछ समय बाद ही ऐसी परिस्थितियां बनी कि आबिद के परिवार का समुद्री जहाजों का कारोबार रेत के ढेर की तरह खत्म हो गया। पिता के ईलाज के लिये मां के साथ आबिद हमेशा के लिये मुम्बई आ गये। बचपन मे पिता की मृत्यू के बाद अमीरी के अर्श से गरीबी के फर्श पर आयी आबिद की अम्मी ने मेहनत मजूरी करके आबिद को पाला। गरीब बचपन के तमाम संघर्षों से दो चार होते हुए आबिद ने मुम्बई के जे. जे. कालेज आफ आर्टस की पढाई पूरी की। आजीविका के लिये मुम्बई की सडक पर चिक्की बेचने से लेकर किताबों की छोटी लाईब्रेरी चलाने आदि कामों मे हाथ आजमाने के बाद उन्होंने गुजराती और हिन्दी पत्रिकाओं के लिये हास्य व्यंग्य कार्टून बनाने और व्यवसायिक लेखन का काम किया।
जुलाई 1963 मे हिन्दी की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका धर्मयुग मे 25 वर्षों तक लगातार प्रकाशित होकर सिल्वर जुबली मनाने वाली ढब्बू जी कार्टून सीरीज ने आबिद सुरती को लोकप्रियता के ऐसे शिखर पर पहुंचाया जहां वे खुद ढब्बू जी बनकर हिन्दी पाठकों के मन मष्तिष्क मे आज तक आसन जमाकर बैंठे हैं।
चित्रकला को अपनी मनमाफिक विधा मानने वाले आबिद सुरती ने लेखन को मूलरुप से अपनी आजीविका के साधन के लिये अपनाया था। गुजराती मे हुआ उनका अधिकांश लेखन जिसका हिन्दी मे भी काफी अनुवाद हुआ है मुलत: व्यवसायिक लेखन ही है। आबिद जी खुद स्वीकारते हैं कि उस दौर का उनका लेखन फर्माईसी है जिसमे लेखक को पत्रिका और प्रकाशक की मांग के अनुरूप कफी समझोते करने पडते हैं और अपने प्रिय लेखक मित्रों की लानत मलामत भी सुननी पडती है।
आबिद सुरती का व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों बहु अयामी हैं।जैसे उनका रहन सहन,जीवन दर्शन,यहां तक कि पहनावा तक विशिष्ट है वैसे ही उनका कथा,कार्टून और चित्रकला संसार भी विशिष्ट है। जिन दिनों आबिद सुरती आजीविका के लिये लिख रहे थे उन दिनों भी उनकी कई कहानियों ने हिन्दी के पाठकों और आलोचकों का ध्यान आकर्षित किया था। बाद मे जब आबिद सुरती ने मूलत: हिन्दी मे लिखना शुरू किया तब से उनका लेखन विशुद्ध साहित्यिक श्रेणी का है।
कार्टून और चित्रकला के साथ साथ आबिद जी ने लेखन की लगभग सभी विधाओं मे हाथ आजमाए हैं।आबिद सुरती की अब तक 80 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इन्होंने कहानियों और उपन्यासों के अलावा कुछ गजलें, नाटक और फिल्म स्क्रिप्ट भी लिखी हैं।साहित्य और कला जगत की चकाचौंध से दूर रहते हुए आबिद सुरती पिछ्ले पचास पचपन वर्षों से इन दौनों क्षेत्रों की एकांत साधना करते रहे हैं। उनका अंदाजे बयां और अंदाजे चित्रण ही विशिष्ट नही बल्कि अंदाजे जीवन भी विशिष्ट है। आजकल वे साहित्य और कला के साथ साथ पानी बचाओ मुहिम के सामाजिक सरोकार से भी गहरे जुडे हैं। बहुत कम साहित्य संस्कृति कर्मी ऐसे हैं जो पानी जैसी बुनियादी चीजों के संरक्षण मे एक जमीनी सामाजिक कार्यकर्ता की तरह गहरे सरोकार रखते हैं।
कैनाल, कोरा कैनवास, बिज्जू, आतंकित और कोटा रेड जैसी चर्चित और प्रशंसित कहानियां एवम कथा वाचक, मुसलमान और अदमी और चूहे जैसे सशक्त उपन्यास लिख्नने वाले इस कथाकार को यूं तो साहित्य जगत के कुछ पुरस्कारों से नवाजा गया है लेकिन साहित्य के बडे पुरस्कार अभी उनकी पहुंच के बाहर रहे हैं। उनका लेखन अभी अनवरत जारी है। उम्मीद की जानी चाहिये कि उनकी कलम से अभी कई अच्छी रचनायें आना बाकी हैं। और निकट भविष्य मे उन्हें साहित्य जगत के शीर्ष पुरस्कारों से भी नवाजा जायेगा।
खुशी का अवसर यह भी है कि बहत्तर साल का बच्चा नाम का उपन्यास लिखने वाले आबिद सुरती आगामी 5 मई को पचहत्तर वर्ष के हो रहे हैं। आबिद जी की प्लेटिनम जयन्ती पर शब्दयोग पत्रिका ने उन पर हाल ही मे एक अंक (जून 2010) केंद्रित किया है।
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