ट्रैफिक जाम
महानगर में
बाल बच्चों को भी नहीं दे पाते
उतना समय
जितना बचाकर रखना पड़ता है ट्रैफिक जाम के लिए !
चाहे कटौती करनी पड़े
कसरत वर्जिश- योगा और पूजा में
छोड़नी पड़ें
रिश्ते नातेदारी की बेहद जरूरी औपचारिकताएं
किसी पर कोई रियायत नहीं करता ट्रैफिक
आप चाहे उच्च न्यायलय के न्यायाधीश हों,
मिलनातुर युवाप्रेमी हों या दम तोड़ते मरीज़ !
महानगर में बरसो रहते रहते
समझदार हो जाते हैं बहुत से लोग
वे घबराते नहीं ट्रैफिक जामों से
न गाली गलौच करते उस पर
सहजता से चुन लेते हैं कई जरूरी काम उसी समय के लिए
या तो हाथों में रखते है कोई प्रिय पुस्तक पढ़ने के लिए
या साज-श्रृंगार कर लेते हैं जाम हुए ट्रैफिक के व्यस्त चौराहों पर !
मुंबई दिल्ली के लम्बे प्रवास में
जाम हुए ट्रैफिक के प्रशांत महासागर में तैरते हुए
मैंने भी खोजी हैं चंद कविताए और कहानियाँ !
एक अच्छी कविता के लिए बधाई । ख़ास बात यह कि आपने ट्रैफिक जाम जैसे त्रासद अनुभव को एक नए नज़रिए से देखा है । ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है । नाचीज़ का एक शेर है-
ReplyDeleteइस शहर में तफ़रीह के सामान बहुत हैं
हैरत है यहीं लोग परेशान बहुत हैं
इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए और एक अच्छा शेर उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया ,
ReplyDeleteआपके ब्लॉग में संवाद के अलावा traffic की रचना हर मुम्बईकर की आपबीती है ,मैं कार्यक्रम में जाते वक़्त रस्ते में ;गाड़ी में बैठे -बैठे ही हर नई ग़ज़ल -गीत याद करती हूँ क्योंकि उतना वक़्त घर नहीं मिलता जितना मुंबई traffic में फँस कर मिल जाता है .
धन्यवाद
धन्यवाद लता जी ।
ReplyDeleteमैं भी आपकी शायरी का प्रशंसक हूं । इधर मित्र देव मणि के माध्यम से आपके ब्लाग की कई बेहतरीन गजलें पढने का मौका मिला।आपके शब्दों का चयन लाजवाब है और शायरी के विषय मौजू हैं।