गजल - 1
हम सफर तो नीम राह तक नही चले
कोई बताए दाल उनसे किस तरह गले
यादों की फेहरिस्त मे हैं हादसे कई
गनीमत है कि चलते रहे अपने काफिले
कुछ तो खुदा का कौल फेल कीजिए जरा
ये क्या कभी इधर कभी उधर जा मिले
तुमने अचानक आ के चोंका दिया मुझे
मैं सोचता था आओगे तुम देर दिन ढले
पैमाना दोस्ती का एक ये भी है राकेश
जो मंजिले मकसूद तक बेखतर चले
Monday, June 7, 2010
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thanks suman jee.
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