Monday, April 19, 2010

आबिद और मैं










कई सालों से जानता हूं आबिद सुरती को

तब से

जब से पढना शुरू किया था धर्मयुग।


आबिद मतलब धर्मयुग

आबिद मतलब ढब्बू जी।



कुछ साल पहले तक

बस इतना ही परिचय था

आबिद सुरती से।



फिर एक शामे अवध

दो हजार पांच या छै: की

इस वक्त ठीक से याद नहीं सही तिथी

एक आम सी सर्द सी शाम की

एक आम सी अदबी रस रंजन पार्टी थी

अफसर कथाकार विभूति नारायण राय के घर

जो खास बनी आबिद सुरती से

रूबरू मुलाकात के बाद।



उस शाम आबिद

ढब्बू जी नहीं थे

थोडे धीर गंभीर से

बीच बीच मे मंद मंद मुस्कुराते

मानो रंग गये हों लखनवी अंदाज में

धीमी आवाज में बतियाते

और उससे भी धीमी रफ्तार से

विस्की की चुस्कियां लेते आबिद।



फिर दिल्ली की एक गुनगुनी दोपहर

पुस्तक मेले का कोई स्टाल

अचानक मिले आबिद

मेरी तरह ही मेले की भीड में भटकते

खोजते कोई खास किताब

किताबों के महासगर में।



बस यहीं आकर अटक गयी थी

हमारी मुलाकात की सूई

तीन चार साल कोई बात नहीं

कोई पत्राचार कोई मुलाकात नहीं।



फिर बीते साल दो हजार नौ का अंतिम महीना

शनिवार की एक सधारण सी शाम

एक साथ गुजारी हम दौनों ने

मुंबई के प्रेस क्लब की छत पर

रस रंग के साथ दुनिया भर के

विविध प्रसंगो पर बात करते हुए।



उस दिन कफी कुछ जाना आबिद को

जितना जाना था पिछले तीस वर्षों मे

उससे भी ज्यादा जाना उन तीन घंटों में।

फिर तो शायद ही कोई शनिवार ऐसा बचा होगा



जब शाम को प्रेस क्लब में न बैठे हों हम दोनों।

इस बीच पढी आबिद की दर्जनों कहानियां

कई उपन्यास्, गजलें,यात्रा वृतांत और विविध लेख

देखा परखा जाना आबिद को बहुत करीब से।



फिर भी लगता है

कहां जान पाया आबिद को अभी

अभी तो बहुत कम जानता हूं आबिद को।



आबिद को जानना इतना आसान कहां

उसे जानने के लिये करनी पडेगी और मशक्कत

पढनी पडेंगी उसकी लिखी अस्सी से अधिक किताबें

देखनी होंगी हजारों पेंटिंग आबिद की

एक बार फिर से दोडानी पडेगी नजर

पच्चीस बरस लम्बी ढब्बू जी कार्टून स्ट्रिप पर।



आबिद को जानने के लिये इतना भर काफी नहीं

उसके साथ घूमना पडेगा मीर रोड की गलियों में

कई बैठक करनी पडेंगी प्रेस क्लब की छत पर

पीनी पडेगी सस्ती डी एस पी ब्लैक विस्की साथ बैठकर।



आप किसी आदमी को जान सकते हैं थोडी देर मे

लेकिन बच्चों का मन जानने के लिये

गुजर जाती है उम्र मांओ की।



आबिद भी तो बच्चा है अभी

और बच्चा भी कोई दूध पीता नही

पके बाल वाला दाढी मूंछ वाला

पचहत्तर सिर्फ पचहत्तर साल का बच्चा।



जब तक मिलता रहा आबिद से दूर दूर से

लगता था आबिद को जानता हूं मैं

अब जब हमारी मुलाकात हो रही हैं जल्दी जल्दी

लगता है बहुत कम जानता हूं आबिद को।

आबिद अगर बच्चा है तो क्या

मेरी भी जिद है बच्चों जैसी

एक दिन अच्छी तरह जानकर ही रहूंगा आबिद को।



अभी तो बहुत कम जानता हूं आबिद को

अभी तो बहुत कुछ जानना है आबिद के बारे मे।


 

9 comments:

  1. आपकी मनोदशा से परिचित हुए. ये लिख कर अच्छा किया आपने क्योंकि वार्तालाप पढ़ कर कई सवाल मन में आ रहे थे लोगों के .

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  2. आपके ब्लॉग में सूरती जी का साक्षात्कार पढ़ कर नयी अनुभूति हुई । कई बातों की जानकारी भी मिली । आप हमारे पोर्टल www.srijangatha.com पर भी लिख सकते हैं । स्वागत

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  3. Paliwalji, dekhiye kaun hai is pate par. Bahut aanand miega. yah bhang se upja abhang hai


    http://wwwaakhyaan.blogspot.com/

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  4. upar srijangatha ka aagrah dekha. achchha laga. vahan jaroor likhiye. Dr. Subhash Rai ki teen kavitayen srijangatha par padi hain. dekhiyega.

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  5. सृजन गाथा मे लिखने के अनुरोध के लिये आभार। आपको मेरे अदने से ब्लोग पर कुछ अच्छा लगे तो उसे पूरा या कोई भी अंश सृजन गाथा मे ले सकते हैं। मेरे ब्लोग की कविता व गजल अन्यत्र प्रकाशित नही हैं।मेरा ब्लोग केवल चन्द मित्रों को पता है।आपके ब्लोग पर काफी नये पाठक इसे पढ सकेंगे।निकट भविष्य मे आपको कुछ गजलें व कवितायें और लेख भी भेजूंगा।

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  6. प्रिय शिव शंकर जी,
    आप जैसे परम प्रिय मित्र को मैं आपकी भाषा,आवाज,पदचाप और और भी बहुत से संकेतों से आकाश और पाताल से भी पहचान सकता हूं। आख्यान ब्लोग की भाषा से साफ है कि आपका ही है।

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  7. आबिद सुरती पर अच्छी कविता है। विभूति नारायण राय कॊ अफसर न लिखते तो भी सब उन्हें जान जाते, क्योंकि वे अफसर बाद में हैं, पहले साहित्यकार हैं, और हिन्दी,उर्दू के तमाम पाठक उन्हें एक कथाकार के रूप में ही जानते हैं। आपकी किताबे देखने को नहीं मिलीं। अपनी सभी पुस्तकों, प्रकाशकों के नाम भी लिखते तो अच्छा था। गज़लों पर अभी बहुत काम करने की जरूरत लगती है।

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  8. priya Dr. Paliwai,
    Sachmuch Apne Mujhe Pahachaanaa Hai. Aajkal Gajalen Khoob Likh Rahe Hain.Inme Se Kuchh Ek to bahut gahari aur kase hue shilp vali hain. Rachanaatmak urvartaa kee shubhkaamanaa ke saath!

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  9. प्रिय भाई शुक्ल जी एवम शिव जी
    आप जैसे सुधी लेखकों और मित्रों की प्रतिक्रियाएं बहुत कारगर होती हैं।धन्यवाद

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